|| आत्म - उन्नति के साधन ||
अपनी आत्मा का उद्धार करना मनुष्य का सर्वोपरि कर्त्तव्य है | इसके लिए प्रयत्न -पूर्वक निम्न साधन करने चाहिए : -
[१ ] सत्संग व स्वाध्याय - सत्पुरुषों का संग और सत - शास्त्रों [ गीता , रामायण , भागवत आदि ] का अध्ययन करके उनके उत्तम सत आचरणों और उपदेशों का जीवन में अनुशरण करना चाहिए | [ २ ] ईश्वर में विश्वास - यह बात श्रधा-पूर्वक मान लेनी चाहिए की ईश्वर है , सर्वत्र है , सर्वान्तर्यामी है , सर्व-शक्तिमान है , सर्व व्यापी है , सर्वज्ञ है , सनातन है , नित्य है , प्रेमी है , दयालु है , परम - आत्मीय है और परम गुरु है | ईश्वर में विश्वास जितना अधिक होगा , आत्मा उतना ही उन्नत होगा | [३ ] नाम जप करना - शरणागत होकर निष्काम और प्रेम भाव से नाम का जप करना [ श्लोक १० / ९ - १० ] चाहिए | भगवान के सभी नाम समान प्रभावशाली हैं | [ ४ ] रूप ध्यान करना - भगवान के नाम जप के साथ [ स्मरण - भक्ति ] उनके रूप का ध्यान करना आवश्यक है | साधक को जो रूप पसंद हो ,उसी का ध्यान करे | जैसे भगवान ने अर्जुन को , उसके चाहे अनुसार पहले विराट स्वरूप का , फि...
र चतुर्भुज स्वरूप का और फिर द्वि- भुज मनुष्य रूप में दर्शन दिए | इतना ही नहीं , साधक अपने मन में जैसा रूप कल्पना से बना ले वैसे ही रूप में भगवान दर्शन दे सकते हैं | उनके अनंत रूप हैं |
[ ५ ] आत्म - कल्याण हेतु प्रयत्नशील रहना - सतो-गुण अपनावें , श्रेय-मार्ग [ भक्ति , सत्संग , स्वाध्याय ] पर चलें , देवी संपदा का आश्रय लें , सद्गुरु के बताए मार्ग का अनुशरण करें | धीरे - धीरे साधन में उन्नति होने पर भगवान के क्षेत्र [ नाम ,रूप , गुण , लीला , धाम और संत ] में मन लगने लगेगा [ लगाना नहीं पडेगा ] और तब भगवत - कृपा से तत्त्व - ज्ञान [ अंत:करण शुद्ध होने पर ] व परमात्मा प्राप्ति अवश्य होगी | [ ६ ] सहज कर्म का पालन - [ श्लोक १८ / ४८ ] - अपने वर्ण- आश्रम धर्म के अनुसार जो सहज कर्म , नित्य कर्म आवश्यक रूप से करना कर्त्तव्य समझ लिया हो , उसे पूर्ण सच्चाई और ईमानदारी से समय पर पूरा
करना चाहिए | जीवन में कभी , किसी दूसरे का हक नहीं मारना चाहिए | लोभ , भय , स्वार्थ आदि से प्रयत्न-पूर्वक बचना चाहिए | अपनी विवेक - बुद्धि के सहारे जो आत्म - उन्नति की चेष्टा करता है , वह प्राय सफल ही होता है | तथा जो शरणागत होकर साधन करता [ १८ / ५६ ] है , उसकी सफलता में तो कोई संदेह ही नहीं रहता |
|| इति ||
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|| आत्म - उन्नति के साधन ||
अपनी आत्मा का उद्धार करना मनुष्य का सर्वोपरि कर्त्तव्य है | इसके लिए प्रयत्न -पूर्वक निम्न साधन करने चाहिए : -
[१ ] सत्संग व स्वाध्याय - सत्पुरुषों का संग और सत - शास्त्रों [ गीता , रामायण , भागवत आदि ] का अध्ययन करके उनके उत्तम सत आचरणों और उपदेशों का जीवन में अनुशरण करना चाहिए | [ २ ] ईश्वर में विश्वास - यह बात श्रधा-पूर्वक मान लेनी चाहिए की ईश्वर है , सर्वत्र है , सर्वान्तर्यामी है , सर्व-शक्तिमान है , सर्व व्यापी है , सर्वज्ञ है , सनातन है , नित्य है , प्रेमी है , दयालु है , परम - आत्मीय है और परम गुरु है | ईश्वर में विश्वास जितना अधिक होगा , आत्मा उतना ही उन्नत होगा | [३ ] नाम जप करना - शरणागत होकर निष्काम और प्रेम भाव से नाम का जप करना [ श्लोक १० / ९ - १० ] चाहिए | भगवान के सभी नाम समान प्रभावशाली हैं | [ ४ ] रूप ध्यान करना - भगवान के नाम जप के साथ [ स्मरण - भक्ति ] उनके रूप का ध्यान करना आवश्यक है | साधक को जो रूप पसंद हो ,उसी का ध्यान करे | जैसे भगवान ने अर्जुन को , उसके चाहे अनुसार पहले विराट स्वरूप का , फि...
अपनी आत्मा का उद्धार करना मनुष्य का सर्वोपरि कर्त्तव्य है | इसके लिए प्रयत्न -पूर्वक निम्न साधन करने चाहिए : -
[१ ] सत्संग व स्वाध्याय - सत्पुरुषों का संग और सत - शास्त्रों [ गीता , रामायण , भागवत आदि ] का अध्ययन करके उनके उत्तम सत आचरणों और उपदेशों का जीवन में अनुशरण करना चाहिए | [ २ ] ईश्वर में विश्वास - यह बात श्रधा-पूर्वक मान लेनी चाहिए की ईश्वर है , सर्वत्र है , सर्वान्तर्यामी है , सर्व-शक्तिमान है , सर्व व्यापी है , सर्वज्ञ है , सनातन है , नित्य है , प्रेमी है , दयालु है , परम - आत्मीय है और परम गुरु है | ईश्वर में विश्वास जितना अधिक होगा , आत्मा उतना ही उन्नत होगा | [३ ] नाम जप करना - शरणागत होकर निष्काम और प्रेम भाव से नाम का जप करना [ श्लोक १० / ९ - १० ] चाहिए | भगवान के सभी नाम समान प्रभावशाली हैं | [ ४ ] रूप ध्यान करना - भगवान के नाम जप के साथ [ स्मरण - भक्ति ] उनके रूप का ध्यान करना आवश्यक है | साधक को जो रूप पसंद हो ,उसी का ध्यान करे | जैसे भगवान ने अर्जुन को , उसके चाहे अनुसार पहले विराट स्वरूप का , फि...
र चतुर्भुज स्वरूप का और फिर द्वि- भुज मनुष्य रूप में दर्शन दिए | इतना ही नहीं , साधक अपने मन में जैसा रूप कल्पना से बना ले वैसे ही रूप में भगवान दर्शन दे सकते हैं | उनके अनंत रूप हैं |
[ ५ ] आत्म - कल्याण हेतु प्रयत्नशील रहना - सतो-गुण अपनावें , श्रेय-मार्ग [ भक्ति , सत्संग , स्वाध्याय ] पर चलें , देवी संपदा का आश्रय लें , सद्गुरु के बताए मार्ग का अनुशरण करें | धीरे - धीरे साधन में उन्नति होने पर भगवान के क्षेत्र [ नाम ,रूप , गुण , लीला , धाम और संत ] में मन लगने लगेगा [ लगाना नहीं पडेगा ] और तब भगवत - कृपा से तत्त्व - ज्ञान [ अंत:करण शुद्ध होने पर ] व परमात्मा प्राप्ति अवश्य होगी | [ ६ ] सहज कर्म का पालन - [ श्लोक १८ / ४८ ] - अपने वर्ण- आश्रम धर्म के अनुसार जो सहज कर्म , नित्य कर्म आवश्यक रूप से करना कर्त्तव्य समझ लिया हो , उसे पूर्ण सच्चाई और ईमानदारी से समय पर पूरा
करना चाहिए | जीवन में कभी , किसी दूसरे का हक नहीं मारना चाहिए | लोभ , भय , स्वार्थ आदि से प्रयत्न-पूर्वक बचना चाहिए | अपनी विवेक - बुद्धि के सहारे जो आत्म - उन्नति की चेष्टा करता है , वह प्राय सफल ही होता है | तथा जो शरणागत होकर साधन करता [ १८ / ५६ ] है , उसकी सफलता में तो कोई संदेह ही नहीं रहता |
|| इति ||
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करना चाहिए | जीवन में कभी , किसी दूसरे का हक नहीं मारना चाहिए | लोभ , भय , स्वार्थ आदि से प्रयत्न-पूर्वक बचना चाहिए | अपनी विवेक - बुद्धि के सहारे जो आत्म - उन्नति की चेष्टा करता है , वह प्राय सफल ही होता है | तथा जो शरणागत होकर साधन करता [ १८ / ५६ ] है , उसकी सफलता में तो कोई संदेह ही नहीं रहता |
|| इति ||
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